
झांसी स्टेशन का नाम वीरांगना लक्ष्मीबाई करने का परिप्रेक्ष्य
देश दुनिया मे विख्यात महारानी लक्ष्मीबाई की शौर्य गाथा को महज झांसी तक समेटना कितना न्यायसंगत है ?
बुंदेलखंड। उत्तरप्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड के झांसी स्टेशन का नाम बदलकर अब वीरांगना लक्ष्मीबाई झांसी जंक्शन कर दिया है। नाम बदलने की सियासी परंपरा में महारथ रखने वाले नेतागण देश की महान विभूतियों को जिस तरह क्षेत्रवाद व राजनीतिक खेल का हिस्सा बना रहे है वह देश की विरासतों को भावी पीढ़ी के समक्ष प्रस्तुत करने का दोयम तरीका है। इस संदर्भ में दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार पीयूष बबेले सोशल मीडिया पर जो लिखें है उसे हूबहू दिया जा रहा है।
" झांसी रेलवे स्टेशन का नाम वीरांगना लक्ष्मीबाई रेलवे स्टेशन रख दिया गया। यह कल्पना से परे की बात थी कि महारानी लक्ष्मीबाई का नाम झांसी के बिना भी लिया जा सकता है। बल्कि महारानी की ख्याति ही झांसी वाली रानी के रूप में है। झांसी वाली रानी नाम इतना विख्यात है कि दिल्ली सहित कई शहरों में सड़कों के नाम रानी झांसी रोड हैं। कई दक्षिण भारतीय महिलाओं के नाम रानी झांसी रखे जाते हैं। महारानी के बारे में सबसे प्रसिद्ध कविता में भी उन्हें झांसी वाली रानी ही कहा गया है। रानी लक्ष्मीबाई का प्रसिद्ध वाक्य भी यही है कि मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।
महारानी लक्ष्मी बाई से जो झांसी अंग्रेज भी नहीं छीन पाए उसे अंततः मोदी और योगी की सरकार ने छीन कर दिखा दिया। अब तक भारत के हर कोने में मुझे अपने शहर का परिचय देने में बिल्कुल दिक्कत नहीं आती थी। झांसी का नाम लेते ही लोग कहते थे अच्छा झांसी वाली रानी, वही शहर। ऐसा कहने वाले लोग अक्सर यह भी नहीं जानते थे कि झांसी बुंदेलखंड में है या उत्तर प्रदेश में। झांसी अपने आप में मुकम्मल पहचान थी। शहरों के नाम अपने आप में संस्कृति, इतिहास और स्मृति के संपूर्ण दस्तावेज होते हैं। नाम परिवर्तन के बाद यह रेलवे स्टेशन भी बाहर के लोगों के लिए अपना ऐतिहासिक महत्व खो देगा। और उसके साथ ही झांसी वाली रानी की कीर्ति कथा भी सहज रूप से स्मृति में नहीं उभरेगी। सम्मान करने के फेर में आप वीरांगना को विस्मृत कर रहे हैं। मथुरा के बिना कृष्ण नहीं हो सकते, अयोध्या के बिना राम नहीं हो सकते, झांसी के बिना लक्ष्मीबाई नहीं हो सकतीं। 1857 की महान क्रांति की महानतम वीरांगना से उसके शहर का नाम अलग करके महान मूर्खता का परिचय दिया जा रहा है। "