
केंद्रीय टीम ने किया दौरा
केन बेतवा लिंक परियोजना की मुकम्मल शुरुआत को केंद्रीय टीम ने किया दौरा,बाँदा में बनेंगे दो बैराज,एक जंगल दो नदियों की आपबीती
यूपी-एमपी बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई एवं किसानों को पानी की समस्या के कथित समाधान देने के लिए केंद्र / दोनों राज्य सरकार के सहयोग से केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना की शुरुआत हो चुकी हैं। सत्रह साल से पर्यावरण मुद्दों पर विवादित रही यह परियोजना मौजूदा केंद्र सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट हैं। वर्ष 2005 से 2021 तक इसमें लगातार वैचारिक,कानूनी विवाद रहे लेकिन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की सीवीसी ( सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी ) की सिफारिश और शर्ते दरकिनार करके हर हाल में इसको 2030 तक पूरा करने का फिलहाल लक्ष्य रखा है। बीते शुक्रवार केंद्रीय टीम ने भोपाल, झांसी व बाँदा का दौरा किया है। इस योजना पर 1400 करोड़ रुपया पहली किस्त जारी हो चुकी हैं जिससे सर्वप्रथम प्रभावित दस गांव के विस्थापन का कार्य किया जाना है।
केन-बेतवा लिंक परियोजना में यूपी/ एमपी के प्रशासनिक बंटवारे की रूपरेखा तय होने के बाद शुक्रवार को केंद्रीय टीम ने भोपाल, झांसी,बाँदा का दौरा किया है। सरकार के दावों पर यकीन करें तो इस बहुउपयोगी लिंक परियोजना के शुरू होने से बुंदेलखंड में सिंचाई की समस्या का माकूल समाधान होगा। जैसा वे पिछली-अगली सिंचाई परियोजना से अभी तक करते चले आ रहे हैं। शुक्रवार को राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण की टीम से जुड़े निदेशक / केन बेतवा लिंक परियोजना प्राधिकरण ( केबीएलपीए ) के सीईओ श्री भोपाल सिंह ने अपने सहयोगियों में शामिल साथ सात सदस्यों की टीम लेकर क्षेत्र का निरीक्षण किया है। केंद्रीय टीम व झांसी के मुख्य अभियंता ने भोपाल, झांसी,बाँदा में इस योजना से बनने वाले बैराज स्थल की वर्कसाइट को देखा। इस दरम्यान कार्य निर्माण के लिए उन्होंने प्रशासनिक विभागों का बंटवारा कर दिया। यूपी बुंदेलखंड में इस योजना का मुख्यालय झांसी बनाया गया हैं। केन बेतवा लिंक परियोजना के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर शीलचंद्र उपाध्याय ने बताया कि केंद्रीय टीम के साथ भोपाल सिंह ने ग्राउंड पर वर्क साइट देखी हैं। पहले योजना से प्रभावित विस्थापित होने वाले दस गांव पर कार्य किया जा रहा है। इसकी अधिसूचना प्रकाशित है। पन्ना,छतरपुर में दस गांव व दूसरे अन्य आंशिक प्रभावित गांवों पर भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही की जा रही हैं। सबकुछ ठीक रहा तो दो से तीन माह में कार्य शुरू हो जाएगा। राजस्व टीम विस्थापित गांवों का रिकॉर्ड दुरुस्त कर रही है। वहीं योजना से जुड़े सिंचाई विभाग के अभियंता श्याम जी चौबे ने कहा कि इस योजना से बाँदा में दो बैराज क्रमशः मरौली व पैलानी में बनेंगे। अभी स्थान चयन किया जा रहा है।
केन बेतवा लिंक से नफा और नुकसान -
विश्वबैंक के कर्ज पर केंद्र सरकार द्वारा अनुदानित दो राज्यों की इस सिंचाई परियोजना में बुंदेलखंड को केंद्रित रखा गया हैं। वहीं मध्यप्रदेश के कुछ अन्य जिलों में भी नहर के माध्यम से पानी देने का डीपीआर में ज़िक्र हैं। छतरपुर से लगे पन्ना टाइगर रिजर्व बफर जोन के दस आदिवासी व दूसरी जातियों के गांव लिंक के डूबक्षेत्र में आ रहे हैं। इन्हें विस्थापित किया जाना है। इन गांवों में क्रमशः मैनारी, खरयानी, पलकोंहा, सुखवाहा, भोरखुहा, गंगऊ बांध स्थल का डोढन गांव प्रमुख है। बांध स्थल पर पहले से बने ब्रिटिश कालीन गंगऊ बांध की ऊंचाई 77 मीटर ऊंचाई बढ़ाने का प्रस्ताव हैं। इसके लिए 6000 हेक्टेयर से ज्यादा वनभूमि अधिग्रहण किया जाना है। डूबक्षेत्र में प्रभावित जंगल के पुनर्वास को भी पन्ना रिजर्व क्षेत्र के आसपास बसे गांवों की भूमि ली जाएगी ताकि राज्य सरकार काटे जाने वाले 23 से 40 लाख बुजुर्ग पेड़ों की भरपाई कर सकें। पन्ना के 70 से अधिक बाघ,प्रवासी गिद्ध, हिरन, मगरमच्छ का प्रजजन केंद्र आदि सबकुछ दूसरी वाइल्डलाइफ सेंचुरी में पुनः बसाया जाएगा। इसके लिए सागर संभाग में एक वन्यजीव अभ्यारण्य के साथ यूपी में ललितपुर, चित्रकूट कैमूर वनरेंज की रानीपुर सेंचुरी को नेशनल वन्यजीव अभ्यारण्य में तब्दील करने का प्रस्ताव हैं। विस्थापित ग्रामीणों को उचित मुआवजा मिला तो वे अन्यत्र निवास करेंगे। केन बेतवा लिंक योजना में बांध स्थल के अतिरिक्त झांसी के बरूआ सागर में विद्युत पावर प्लांट, बाँदा में दो बैराज एवं करीब 44 हजार 605 करोड़ के प्रस्तावित बजट से 221 किलोमीटर लंबी सिंचाई नहर को विकसित करना है। इस लिंक परियोजना के निर्माण में करीब दो सौ कुशल व् अकुशल कर्मचारियों का स्टाफ रखा जायेगा ।
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योजना का विरोध -
मध्यप्रदेश के पर्यावरण कार्यकर्ता अमित भटनागर लगातार इस पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने इसी 9 से 14 मई तक योजना प्रभावित गांवों में वनवासी अधिकार यात्रा निकाली हैं। गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटेकर इसकी मुखर विरोधी हैं। वहीं नदियों पर बांध की दिशा व दशा अध्ययन के विशेषज्ञ सैंड्रप के श्री हिमांशु ठक्कर, किसान नेता समाजवादी सुनीलम और स्वयं संवाददाता लगातार साल 2007 से इस प्रोजेक्ट का ज़मीन पर अध्ययन कर रहा है। पर्यावरण के लिहाज से यह बिल्कुल भी निष्प्रयोज्य योजना है। पन्ना टाइगर रिजर्व को उजाड़ कर बेतहाशा खनन से प्रभावित केन- बेतवा नदी पर पहले से बने 11 से ऊपर छोटे बांध की स्थिति सुधारने के बनिस्बत अब यह परियोजना लाई गई हैं। बतलाते चले कि मध्यप्रदेश की पूर्व कैबिनेट मंत्री सुश्री कुसुम सिंह महदले ने पन्ना के जंगलों को काटने पर दुःख व्यक्त किया और कहा पन्ना का नैसर्गिक पर्यटन खत्म हो जाएगा। वहीं पन्ना की रानी समेत पर्यावरण पत्रकार श्री अरुण सिंह लगातार इस पर ग्राउंड विश्लेषण करते आ रहे हैं लेकिन सरकारों की हठधर्मिता के आगे जनता की कब चलती हैं। सत्तारूढ़ माननीय तो वही बोलेंगे जो सरकार को करना है आखिर उनकी कुर्सी व राजनीति का सवाल हैं। पर्यावरण देश मे मुख्य मुद्दा होता तो छत्तीसगढ़ में हसदेव जंगलों का उजाड़ और छतरपुर के बक्सवाहा जंगलों का कटान करने की नीतियां कैसे बनती ?