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धसान में लिफ्टर

छत्तरपुर की धसान में लिफ्टर से खनन तो केन में गरज रही पोकलैंड मशीन,बाँदा में हालात बद्दतर

- केन नदी की चित्कार अनसुना कर रहे सत्ताधारी, लिफ्टर से नदी को रौंद रहे मौरम के कारोबारी। 
- पत्रकारिता जगत इसलिये खामोश है क्योंकि अधिकांश बिकाऊ है। 
- छतरपुर में बेतहासा तीव्र गति से दौड़ते ओवरलोड डम्फर कुचल रहे आम लोगो का जीवन। 
- बुंदेलखंड के छतरपुर और बाँदा में केन का मर्दन करते लाल बालू ठेकेदारों ने यहां की आवाम को बौना साबित कर दिया हैं। 

@ धीरज चतुर्वेदी,अधिमान्य पत्रकार,छतरपुर मप्र। 

मध्यप्रदेश के छतरपुर में केन नदी की लाल बालू मौरम ने माफियाओ को दबंग कर दिया है। सत्ता पर बैठे माननीयों के कारखास और विपक्ष की जुगलबंदी ने सिस्टम का मुंह दाब लिया है। या यूं कहें कि ठेकेदारों ने पूरे सरकारी तंत्र को मौरम नीलामी में खरीद लिया है। पर्यावरण संरक्षण एक्ट व  एनजीटी के कायदे क़ानून को अपनी लक्जरी गाड़ियों के काफिले में फुर्र करते माफिया किसी भी हद तक जाकर धंधा आबाद रखने का पैंतरा सीख चुके हैं। केन नदी में बलात लिफ्टर लगाकर चीर हरण चल रहा है। विडंबना है कि कोई सुनने और देखने वाला दूर तक नहीं है। मध्यप्रदेश में नदियों की अस्मिता भंग की जा रही है। वहीं बालू से लदे डम्फर आम लोगो की सांसें  कुचल रहे है। अक्सर ओवरलोड डम्फर से होते हादसे इसकी बानगी हैं। बतलाते चले कि 
सोमवार की सुबह नौगांव जनपद के अलीपुरा घाट से अवैध लाल बालू मौरम भरकर बेतहासा गति से आ रहे डम्फर ने एक मोटरसाईकिल सवार को जोरदार टक्कर मार दी हैं। इस हादसे में बाइक सवार ग्राम टीला निवासी प्रदीप यादव तो बच गए पर उसकी मोटर साईकिल क्रमांक एमपी 16 एमसी 5551 को डम्फर ने रौंद दिया जो पूरी तरह क्षतिग्रस्त हों गई हैं। आज 30 मई दिन सोमवार को ही समाचार पत्र प्रखर ज्ञान ने अलीपुरा घाट से बालू रेत के अवैध खनन को प्रमुखता से प्रकाशित किया हैं। रिपोर्ट में अंध गति से दौड़ते डम्फरो से आम लोगो के जीवन पर मंडराते खतरे की आशंका का जिक्र किया गया हैं।
जानकारी यह भी हैं कि धसान नदी के अलीपुरा घाट के ठेकेदार को मौरम उत्खनन के लिए अभी तक आवश्यक विभागीय, पर्यावरण स्वीकृति प्राप्त नहीं हुई है। वैधानिकता के बिना ही ठेकेदार ने अपनी पहुंच और स्थानीय प्रशासन की सांठगांठ से केन की सहायक नदी धसान को छलनी करना शुरु कर दिया है। सिस्टम में नोटों की बारिश और नीलामी में बिकाऊ तंत्र की दम पर सभी जिम्मेदार खामोश कर दिए गए है। बताया जा रहा है ठेकेदार ने बारिश शुरु होने से पहले अलीपुरा के पास खेतो में हजारों मीट्रिक टन बालू मौरम के ढेर लगा दिये है। जबकि रेत डंप करने की वैधानिकता एमपी में नहीं है। सवाल यह हैं कि जब अलीपुरा घाट से बालू रेत खनन की ठेकेदार के पास विधिवत स्वीकृति नहीं है तो इस तरह की अवैध गतिविधिया सरकार और उनके नौकरशाह कैसे समर्थित करते हैं ? यह कृत्य अफसरों की नियत में खोट को दर्शाती है। एक प्रकार से बालू मौरम के अवैध खनन में इस्तमाल भारी पोकलैंड मशीनों के पहिये में लगे दांते हर नियम कायदे क़ानून को रौंदकर खनन करना चाहते हैं। यह केन, धसान के पर्यावरण को कुचल रहे है। छतरपुर में केन नदी के साथ धसान की चित्कार सत्तासीन लोगों को वैसे ही सुनाई नहीं देती जैसे चंद रुपयों के लिए स्थानीय पत्रकारिता को पेशा बना चुके पत्रकारों को। नदी चीख रही है कि मेरी आबरू के साथ खिलवाड़ मत करो पर एक प्रकार से धृतराष्ट्र के दरबार में अट्टहास जारी है और नक्कारखाने में ढोल पीटने वाला कोई अधिकारी मौजूद नहीं हैं जो केन नदी में खनन करते अवैध लिफ्टर को कार्यवाही से फिल्टर करा सके। खनिज एक्ट व खनन लीज डीड की शर्तें नदी जलधारा में पोकलैंड व लिफ्टर मशीनों को प्रतिबंधित करती है। बावजूद इसके यह बेखौफ चल रहा है। जाहिर हैं बिना राजनीतिक संरक्षण के यह मुनासिब नहीं हो सकता हैं। 

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बाँदा में भी अवैध उत्खनन -

स्थानीय पत्रकार खरीदने के बाद ब्यूरोक्रेसी को साधकर मौरम ठेकेदारों ने छतरपुर से लगे बाँदा में भी केन नदी पर लाल बालू की अवैध निकासी को गुलजार कर रखा है। मार्च से सड़कों के किनारे लगे खेतों में पहाड़ जैसे बालू डंप किये जाने लगे हैं। खदानों से खबरनवीसों को हर महीने अच्छा रुपया वितरण होता हैं। खदान संचालक, मीडिया और प्रशासन मिलकर बुंदेलखंड की नदियों को धीमी मौत की तरफ ले जाने की कवायद में जुटे हुए है। मसलन बाँदा के मरौली खंड 4 में आवास विकास स्थित एक पांडेय पत्रकार ज़िले के पत्रकारों को साधने का ज़िम्मा पिछले दो माह से ले रखे हैं। वहीं कनवारा खदान में संजय तिवारी स्थानीय पत्रकारिता को रुपयों से मौन करते है। अमलोर खदान खंड 7 के नेटवर्क भी एक पूर्व पत्रकार से जुड़े हैं। इसी गांव के खंड 8 में भोपाल के बंसल / अन्य राजनीतिक लोग बेपरवाह हैवी पोकलैंड से उत्खनन कराते है। बाँदा के मरौली में चल रही खदान खंड 2,3,4 में दो साल से प्रशासन चुप हैं। क्या वजह हैं कि खदान में कोई आंदोलन हो, किसी मजदूर की मौत हो जाये या अवैध खनन रुकवाने का शिकायत पत्र दिया जाता हैं तो कार्यवाही के नाम पर सिर्फ औपचारिक खानापूर्ति की जा रही हैं। यह बेहद निंदनीय व भविष्य के लिए घातक कृत्य हैं। 

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