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सफल कहानियां

हमीरपुर : बाबा कृष्णानंद ने अकेले खोद लिया आठ बीघा तालाब 

"आदमी जब जज्बे और जुनून से भरा होता है तो हर काम आसान हो जाता है। लीक से हटकर अकेले जब आप चलते है तो लोग शुरुआत में साथ नहीं देते है या फिर उपहास उड़ाते है। ऐसा अक्सर समाज में देखा जाता है। यूपी बुंदेलखंड के जिला हमीरपुर में एक संत कृष्णानंद। इन्होंने अपने श्रमदान से अकेले ही करीब आठ बीघे का तालाब खोदा है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के ट्वीट के बाद कांग्रेस के स्थानीय एमएलसी  ने सरकार से इन्हें सम्मानित करने का अनुरोध किया है।" 

हमीरपुर। पर्यावरण के तमाम झंझावात झेलने वाले बुंदेलखंड में चंदेलों के दर्जनों बड़े तालाब आज खत्म हो चुके है। इन तालाबों में लोगों ने अवैध कब्जे किये और उन्हें विकास की भेंट चढ़ा दिया। बाँदा में तो तालाब की ज़मीन पर अतर्रा में जल संस्थान का भवन निर्मित हो गया। वहीं सरकारी लेखपाल ने बाँदा शहर से लगे अतर्रा मार्ग पर बाँदा नवाब के द्वारा बनवाये बाबू साहब तालाब को भूखंडों में बिकवा दिया। शहर के 6 बड़े तालाब आज दफन होने को है। कुछ ऐसा ही दूसरे ज़िलों में है। चित्रकूट मंडल का जिला हमीरपुर भी तालाबों की बेदम कहानियों से अछूता नहीं है। वहीं प्यास से दम तोड़ रहे पशुओं,आसमानी पक्षियों और एक-एक बाल्टी पानी के लिए भटक रहे ग्रामीणों को यहां  देखकर एक संत कृष्णानंद को पीड़ा हुई तो उन्होंने गांव में पानी की स्थायी व्यवस्था करने का संकल्प ले लिया। इस इंसानी हौसले और जुनून ने साबित किया कि मनुष्य इक्षाशक्ति रखे तो सबकुछ सहज है। इसकी नजीर पेश करते हुए न संत कृष्णानंद ने अकेले ही आठ बीघे का कलारन दाई तालाब खोद दिया। यह पुराना तालाब जर्जर अवस्था मे अवैध कब्जों का शिकार था। इसमें पानी नहीं था जिससे ग्रामीण हलकान थे लेकिन उपाय कौन करें इसकी योजना किसी के पास नहीं थी। संत ने शुरुआत में लोगों को समझाया और साथ देने की बात की लेकिन कोई साथ नहीं आया। बल्कि समाज ने बारिश की बूंदे सहेजने वाले संत का गाहे बगाहे उपहास उड़ाया। उल्लेखनीय है कि चार साल के इस अथक श्रमदान से उन्होंने असंभव को संभव कर दिया। जलसंकट वाले गांव में आठ बीघा तालाब खोदने वाले उन्ही संत कृष्णानंद को अब विधान परिषद में सम्मानित किया जाएगा। बतलाते चले कि संत ने काम की मार्केटिंग नहीं की जैसा अमूमन कथित पानी पर्यावरण से जुड़े लोगों का स्टंट रहता है। उनके इस काम को अखबारों में पढ़कर कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने ट्वीट किया। इसके बाद कांग्रेस नेता व विधानपरिषद सदस्य दीपक सिंह ने जुलाई माह में सरकार से सिफारिश की थी कि उन्हें सम्मानित किया जाए।

मीडिया में बुंदेलखंड के 'मांझी' नाम से विख्यात संत कृष्णानंद  सुमेरपुर ब्लॉक से 20 किमी दूर पचखुरा महान गांव में कल्लू सिंह के परिवार में सन् 1964 में जन्मे थे। संत कृष्णानंद इंटरमीडिएट के बाद 18 वर्ष की उम्र में हरिद्वार जाकर स्वामी परमानंद जी महाराज के शिष्य बन गए। वहीं से बुलंदशहर की खुर्जा तहसील आए और जहांगीरपुर के ग्राम भाईपुर में परमानंद शिक्षण संस्थान की नींव रखी थी। वर्ष 2014 में हमीरपुर के पैतृक गांव वापस आए और गांव बाहर बने रामजानकी मंदिर को रहवास बनाया। यहीं दो सौ वर्ष पुराना कलारन दाई तालाब है जिसको सुधारने का व्रत संत ने लिया।

तकरीबन आठ बीघे में फैला यह तालाब सिल्ट व अन्य समस्याओं सेअटा हुआ था। बड़े तालाब को पुनर्जीवित करने के लिए उन्होंने फावड़ा उठाया और वर्ष 2015 से लगातार श्रमदान कर तालाब को गहरा करना शुरू किया। चार साल में तालाब की सात फिट गहरी खोदाई कर तीन हजार से ट्रैक्टर ट्राली से ज्यादा मिट्टी उन्होंने निकाली। वहीं रामजानकी मंदिर के पीछे मिट्टी को एकत्र किया ताकि जर्जर हो चुके मंदिर की दीवार सधी रहे। इस मेहनत के पसीने में बारिश की बूंदें मिली और इस समय तालाब लबालब भरा हुआ है। ग्रामीण चकित है और संत के साथ है।

क्षेत्र के एमएलसी दीपक सिंह ने विधान परिषद सचिवालय संसदीय अनुभाग संसदीय कार्य अनुभाग-2 को नियम-59 के तहत संत को सम्मानित करने की सिफारिश की थी। संस्कृति अनुभाग के प्रमुख सचिव जितेंद्र कुमार ने प्रमुख सचिव ग्राम विकास विभाग एवं प्रमुख सचिव वन एवं पर्यावरण विभाग को पत्र भेजकर कृष्णानंद का ब्योरा तलब किया है। 30 नवंबर को मिले पत्र के बाद वन संरक्षक चित्रकूट धाम ने प्रभागीय वनाधिकारी हमीरपुर के माध्यम से तालाब की फोटो और कृष्णानंद की जानकारी जुटा ली है। डीएफओ के मुताबिक जल्द ही सम्मान की तिथि तय की जाएगी। इससे पूर्व दूसरे नेताओं ने भी इस मुद्दे को उठाया था। संत कृष्णानंद का यह भगीरथ प्रयास सराहनीय है।

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